"ममता की तड़प और मासूम की किस्मत: हवस, सौदेबाज़ी और इंसाफ़ की जद्दोजहद"

 



(फिरदोस अंसारी)


भोपाल के जहांगीराबाद इलाके से निकली यह दर्दनाक दास्तां इंसानियत को झकझोर देने वाली है। एक मासूम जिसे इस दुनिया में आने के लिए पहले ही जद्दोजहद करनी पड़ी, क्योंकि उसकी माँ समाज की बेरहम नज़रों से डर रही थी। अल्पसंख्यक समाज से ताल्लुक रखने वाली यह युवती किसी बहुसंख्यक समाज के सफेदपोश की हवस का शिकार बनी। उसने सोचा कि बिना माँ-बाप के पैदा हुए बच्चे की ज़िंदगी नर्क से कम नहीं होगी, इसलिए वह उसे इस दुनिया में लाने से कतराती रही।


लेकिन कहते हैं, "मारने वाले से बचाने वाला बड़ा होता है"। मासूम की ज़िंदगी बची, पर हालात ने उसे इंसाफ़ से दूर कर दिया।


बदहवास हालत में युवती एक डॉक्टर दंपत्ति के संपर्क में आई। जिनकी खुद की कोई संतान नहीं थी। डॉक्टरों को लोग भगवान का रूप मानते हैं, लेकिन यहाँ कथित मानवता और लालच के बीच सौदेबाज़ी हो गई। पीड़िता से कहा गया कि समय निकल चुका है, अब गर्भपात संभव नहीं है। लेकिन बच्चे को जन्म देने के बाद वह नवजात उसी दंपत्ति को सौंपना होगा। मजबूर युवती ने रायसेन रोड स्थित एक निजी अस्पताल में अपने बच्चे को जन्म दिया। मासूम को वहीं डॉक्टर दंपत्ति ने अपने पास रख लिया।


लेकिन माँ की ममता आखिर कब तक दबाई जा सकती थी? कुछ समय बाद युवती की ममता जाग उठी, उसका दिल तड़पने लगा। उसने अपने मासूम को वापस पाने की कोशिशें शुरू कीं। लेकिन हर तरफ उसे दर-दर की ठोकरें मिलीं। अब हालात ऐसे हैं कि बच्चा फिलहाल एक सरकारी संस्था की निगरानी में है।


सबसे बड़ा सवाल यह है कि —


आख़िर कौन सा ऐसा दबाव है कि पीड़िता उस दरिंदे सफेदपोश के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने से बच रही है?


महिला संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की आवाज़ अब क्यों खामोश है, जबकि यह मामला एक प्रमुख समाचार पत्र में प्रकाशित भी हो चुका है?


क्या मासूम का कसूर सिर्फ इतना था कि उसका जन्म हालात और हवस की वजह से हुआ?


इस मामले में ज़िम्मेदारों पर सख़्त कार्रवाई होनी चाहिए, ताकि मासूम को न्याय मिल सके और पीड़िता को भी इंसाफ़ का भरोसा। समाज को यह समझना होगा कि माँ और बच्चे के रिश्ते से बढ़कर कोई रिश्ता नहीं होता।


आज हर इंसान यह पूछ रहा है कि —

उस मासूम को इंसाफ़ कब मिलेगा? और हवस व लालच के गुनहगारों को सजा कब?