*कारवां गुज़र गया, ग़ुबार देखते रहे*


                       *😭अगिया बेताल 😭*

(क़मर सिद्दीकी) 

चुनावी बरखा का ये सीज़न भी गुज़र गया। पिछली बार की तरह इस बार भी विपक्ष के आंगन में वोटों के बादल ख़ूब उमढे और गड़गड़ाहट भी अच्छी ख़ासी सुनाई दी, पर सराबोर सामने वाले घर को कर गए,और इस क़दर किया कि, वो ख़ुद भी ताज्जुब में हैं। हर बार की तरह इस बार भी एक आस, कि शायद कोई करिश्मा हो जाए! हुज़ूर चुनाव जीतने के लिये "करिश्मा" नहीं "क़रीना" की दरकार होती है। "क़रीना" का मतलब समझ न आए तो अपने उस शायर से पूछ लेना जिसे तुमने पूरे चुनाव में शायरी से वोट जुटाने की ज़िम्मेदारी दे रखी थी। वो दिन लद गए जब,नारे, जुलूस, रैली, मुशायरा से भी बोट जुटाए जाते थे,अब तो ज़मीनी काम और मैंनेजमेंट का दौर है। आप अपने  "बाबा" के तथा-कथित हाईड्रोजन बम पर इतराते रह गए ,उधर एक दिन पहले असली धमाका हो गया, जिसने आपकी उम्मीदों को धुआं धुआं कर दिया

*चेहरे पे सारे शहर के ग़र्द-ए-मलाल है, जो दिल का हाल है वही दिल्ली का हाल है।*

वैसे बिहार के विपक्ष ख़ास तौर पर कांग्रेस के पास मज़बूत बहाना है, चुनाव आयोग और ओवैसी! अब तो ये नौबत आ चुकी है कि, MIM के लोग भी ताना मार रहे हैं कि, कांग्रेस ने हमारे हमारे वोट काट लिये नहीं तो हम 29 में से कम से कम 10 सीटें जीत जाते। तो क्या कभी देश की सब से बड़ी और पुरानी पार्टी अब ये काम भी करने लगी है..?अब लोग भी असमंजस में हैं कि, दरअसल बोट कटुआ है कौन?

*परछाइयाँ क़दों से भी आगे निकल गईं, सूरज के डूब जाने का अब एहतिमाल है।*

सामने वाले ने समाज की कमज़ोर नस को अच्छी तरह भांप लिया है। बहनों के जेब में डालो, और भाइयों से वसूल करो! और वो लगातार क़ामयाब भी होते आ रहे हैं।आप वादा कर रहे थे कि हम और अधिक इमदाद करेंगे, पर महिलाएं इतनी भी कम अक़्ल नहीं। वो वादे पर नहीं नक़द पर विश्वास करती हैं.

 आप मुसलमानों और यादवों को ख़तरे से बचाना चाह रहे थे उनकी सोच बड़ी है इसलिए उन्होंने पूरे हिन्दुओं के दर्द को समझा।

परवीन शाक़िर का एक शेर है,

*मैं सच कहूंगी फिर भी हार जाउंगी, वो झूट बोलेगा और ला जवाब कर देगा।*

हां एक चूक उधर से भी हो गई। अक्सर मैकेनिक लोग गाड़ियों की रफ़्तार को नियंत्रित करने के लिये एक यंत्र लगाते हैं जिसे शायद "गवर्नर" कहते हैं। शाह साहब ने संभवतः वो उपलब्ध नहीं करवाया था। इसीलिये उनके कारिंदों ने स्वयं की निर्धारित  स्पीड "160" को लांघते हुए आशंकाओं की बाउंड्री को ज़मींदोज़ कर दिया।

शायद नीचे वाले कुछ ज़्यादा ही उत्साहित हो गए होंगे।

 तस्वीर बनाने वाला मुसव्विर स्वयं बिहार की ये अप्रत्याशित तस्वीर को देखने के बाद ताज्जुब में है,, शाह साहब के कार्यालय में रफ़ी साहब के गाने की पंक्तियाँ गूंजने लगीं, "मुसव्विर ख़ुद पारेशां है, कि ये तस्वीर किसकी है"।

Post a Comment

0 Comments