भोपाल। महिला सुरक्षा शाखा द्वारा “मानव दुर्व्यापार अपराध की रोकथाम” विषय पर एक दिवसीय राज्यस्तरीय ऑनलाइन कार्यशाला का आयोजन नवीन पुलिस मुख्यालय, भोपाल स्थित सभागार में किया गया।
इस कार्यशाला में प्रदेश के सभी जिलों की मानव दुर्व्यापार निरोधी इकाइयों (AHTU) के नोडल अधिकारी (अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक), उप पुलिस अधीक्षक (महिला सुरक्षा), महिला थाना प्रभारी सहित निरीक्षक से उपनिरीक्षक स्तर तक के कुल लगभग 20-20 पुलिस अधिकारी ऑनलाइन जुड़े। भोपाल नगरीय पुलिस के अधिकारी भी सभागार में प्रत्यक्ष रूप से शामिल हुए।
कार्यशाला का शुभारंभ विशेष पुलिस महानिदेशक (महिला सुरक्षा) अनिल कुमार ने किया। अपने उद्घाटन संबोधन में उन्होंने कहा—
“मानव दुर्व्यापार अपराध नहीं बल्कि पाप है। हमें इस विषय को लेकर और अधिक संवेदनशील होकर कार्य करना होगा।”
उन्होंने हाल ही में हुई पुलिस कार्रवाई का उल्लेख करते हुए बताया कि—
- गुना जिले से 16 बंधुआ मजदूरों को रेस्क्यू किया गया।
- रीवा जिले में “ऑपरेशन नन्हा बचपन” के तहत 6 माह के बच्चे को बचाया गया, जिसे पहले मुंबई में 8 लाख रुपये में बेचा गया और बाद में 29 लाख रुपये में रायगढ़ (मुंबई) में पुनः बेचा गया था।
विशेष पुलिस महानिदेशक ने अधिकारियों को निर्देशित किया कि मानव दुर्व्यापार से जुड़े अपराधों पर त्वरित कार्रवाई करते हुए प्रभावी अभियोग पत्र तैयार किए जाएं। साथ ही, इस क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने वाले पुलिस अधिकारियों को पुरस्कृत करने की घोषणा भी की।
कार्यशाला में अंतरराष्ट्रीय न्याय मिशन (IJM) की अधिवक्ता सुश्री रेनिता ने मानव दुर्व्यापार की प्रवृत्तियों, इसके प्रसार, विभिन्न स्वरूपों एवं रोकथाम में पुलिस की भूमिका पर विस्तृत वक्तव्य दिया। उन्होंने अधिकारियों को अनैतिक व्यापार निवारण अधिनियम, 1956 और बंधुआ श्रम पद्धति (उन्मूलन) अधिनियम, 1976 के प्रावधानों की जानकारी दी तथा पीड़ित की पहचान, बचाव, पुनर्वास और दोषियों के विरुद्ध त्वरित कार्रवाई को सबसे अहम बताया।
कार्यशाला में गंभीर अपराधों के पर्यवेक्षण संबंधी मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) पर भी चर्चा की गई। विशेष पुलिस महानिदेशक (महिला सुरक्षा) ने कहा कि SOP का कड़ाई से पालन करने से अपराधों की रोकथाम और अपराधियों पर कठोर कार्यवाही सुनिश्चित की जा सकती है। उन्होंने जिलों के पुलिस अधीक्षकों को स्पष्ट दिशा-निर्देश दिए कि एफआईआर दर्ज होने के बाद विवेचना के दौरान सभी साक्ष्यों का संकलन व विश्लेषण कर ही अभियोग पत्र तैयार किए जाएं।